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Monday, 21 September 2020

Allama Iqbal Shayari

  Propertrick       Monday, 21 September 2020

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Allama Iqbal Shayari
Allama Iqbal Shayari

तेरे सझ्दे कहीं तुझे काफ़िर ना कर दे ऐ इकबाल
तो झुकता कहीं और है सोचता कहीं और है

जानते हो तुम भी फिर भी अजनान बनते हो
इस तरह हमें परेशान करते हो
पूछते हो तुम्हे किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी सवाल करते हो

Allama Iqbal Shayari photo
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मत पूछ के हम मोहब्बत कि किस रह से गुज़रे है
ये देख के तुझ पर कोई इलज़ाम ना आने दिया

बात सझ्दों कि नहीं खुलूस दिल कि होती है इकबाल
हर मयखाने में सराबी और हर मस्जिद में कोई नमाजी नहीं होता

जफा जो इश्क में होती है वो जफा ही नहीं
सितम ना हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं

Allama Iqbal Shayari image
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तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

आह जो दिल से निकली जाये गी
किया समझते हो खली जाये गी


हम वक़्त गुज़ारने वाले नहीं रौनक महेफिल में
ज़िन्दगी भर याद करोगे के ज़िन्दगी में आया था कोई

Allama Iqbal Shayari Sher
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देख कैसी क़यामत सी बरपा हुई है आशियानों पर इक़बाल
जो लहू से तामीर हुए थे पानी से बह गए

अमल से ज़िन्दगी बनती है , जन्नत भी जहनुम भी
यह कहा की अपनी फितरत में न नूरी है न नारी है


इक़रार .ऐ.मुहब्बत ऐहदे.ऐ.वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं .इक़बाल.
हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने खातिर जीता है

तुम से गिला किया ना ज़माने से कुछ कहा
बर्बाद हु गये बड़ी साग्दी से हम

Allama Iqbal gajal
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जिन का मिलना नसीब में नहीं होता
उनकी मोहब्बत कमाल कि होती है

सब कुछ हासील नहीं होता ज़िन्दगी में यहाँ
किसी का कास तो किसी की आह रहे जाती है


इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा

Allama Iqbal in hindi
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ज़रूरी तो नहीं मोहब्बत लाफ्ज़ुं में बयाँ हु
किया सच मेरी आँखें तुम्हे कुछ नही कहेती

मत तरसा इतना किसी को अपनी मोहब्बत के लिए
किया पता तेरी महोब्बत पाने के लिए जी रहा हो कोई

मुलाकातें नहीं मुमकिन हमें अहेसास है लेकिन
तुम्हे हम याद करते है बस इनता याद रखना तुम

Allama Iqbal poerty
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हम जब निभाते है तो इस तरह निभाते है
सांस लेना तो छोड़ सकते है पर दमन यार नहीं


ढूंढता रहता हूं ऐ .इकबाल. अपने आप को.
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं

खुदा के बन्दे तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
मैं उसका बन्दा बनूंगा जिसको खुदा के बन्दों से प्यार होगा

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